“दीप्त हुस्न में गुम हुए हैं चाँद तारे”
जब भी वाबस्ता होता हूँ उन फूलों से,
करता रहा तुलना जिनका तुमसे,
पाया जमाल सबका मद्धम तेरी रानाईयों में,
बेअदद सकून पाता हूँ तेरी परछाईयों में।
बहार,संगमरमर,गुलों,घटाएँ,नेति फसाने,
कुछ नहीं तेरे लिए इनकी बिसातें,
इनकी शोखी गूँजती होगी खिजाँ के मारे वीरानों में,
जैसे फकत सब्जों का गुमाँ हो बियाबानों में,
ज्यों कुमुदिनी का गुरूत्व हो पंकसर में,
श्याम नभ हो और,लौ का हो गुरूर रजनीचर में।
दीप्त हुस्न में गुम हुए हैं चाँद तारे,
क्या करूँ तारीफ तेरी ? तुझपर बेनफ्स सारी मिसालें ।
-निलेश कुमार गौरव
Tuesday, November 19, 2013
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