Tuesday, November 6, 2018

Tuesday, June 12, 2018

The Vale of ‘No-Persecution’

  

We are defending with guns
against militants of ‘no-religion’

When our soldiers are on winning gyre,
Narratives are built for the cease-fire,

If they are sprouts of ‘faith-less’ terrorism,
and fake are the facts of exodus n persecution,

Why to see their rituals n beliefs,
n delay ‘the discussion’ on the holy preach?
We shall be finished in the gamble of appease.
                                     -Nilesh Kumar Gaurav

Sunday, June 10, 2018

कैइसे अब हम निभाई, रोहिंग्या-प्रेम रे भाई

कैइसे अब हम निभाई,
रोहिंग्या-प्रेम रे भाई,
कैसे अब हम मानी,
तोहरा के अप्पन जानी,
हो ओऽऽऽऽऽ
जहिया सब हिंसक संसार रहली,
निबाहत अतिथि-सत्कार रहली,

हुआँ तोहरा के बसैइलन,
जहां से ‘नेटिव’ के भगैलन,
यूनिसेफ के दूत सब,
चुल्लू कहां से ढूंढवऽ, इरावदी में ही डूब लऽ
हो ओऽऽऽऽ
हिआं सब करते विचार रहली,
हुआं हिन्दुअन के क़ब्र हजार निकली

                       - निलेश कुमार गौरव

Sunday, May 20, 2018

Thursday, May 10, 2018

Thursday, March 8, 2018

धर्म तो अफीम थी न ?

क्यों कामरेड?
धर्म तो अफीम थी न ?
फिर ?
अफीम के बिचड़े को,
किताब,पढ़ाई, सोच औ चौराहों पर,
बोना ही नहीं, जबरन उगाना निर्जीव फसल की तरह,
भूख से छछनते आंत,
कब तक पचायेगी 'प्लास्टिक राइस' ?
जान कर बंदूकों की कीमतें,
मांग रही है कारतूसों के बदले‌ अनाज,
लाद दिये हो कंधों पर आग्नेयास्त्र और ग्रेनेड,
कहां से आते हैं इतने पैसे,
जन समर्थन इतना सच में है क्या ? बोलो न कामरेड,
'क्रांति' की बीन पर अब करता नहीं यकीन,
सर्वहारा देख रहा है कामरेड,
आपके तख्त औ ताज के मंशे,
श्यूडो इंटेलेक्चुअलिज्म के डंके,
बनाते आ रहे हैं तुष्टिकरण की गीली जमीन,
'क्रांति' की बीन पर अब करता नहीं यकीन,
सर्वहारा देख रहा है कामरेड,
आपके तख्त औ ताज के मंशे,
फिर भी जिंदा रह जाते हे मार्क्स और लेनिन !
अगर छिपाते नहीं पंथ होने के मंसूबे,
झूठे तटस्थता के तिकड़म ही बनते तुम्हारे पंथ के कुटिल रास्ते,
आते ही रहे हैं ‘उपासक’ जत्थे,
तब धकेल नहीं पाती घर की ड्योढ़ी और चारदीवार,
तुम पर भी होती निछावर सर्व धर्म समभाव /

-निलेश कुमार गौरव