चाह थी इक बूंद-ए-शबनम की,दर्द का दरिया मिला,
पूनम की रात में मुकम्मल अंधियारा मिला ।
थम सकता था मेरी आँखों से आबशारों का सिलसिला,
इश्तियाक-ए-यार था मेरी पलकों में तब सींचता हुआ ।
-निलेश कुमार गौरव
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