Sunday, November 4, 2012

चाह थी इक बूंद-ए-शबनम ....chaah thi ek boond-i-shabnam ki..

चाह थी इक बूंद-ए-शबनम की,दर्द का दरिया मिला,
पूनम की रात में मुकम्मल अंधियारा मिला ।
थम सकता था मेरी आँखों से आबशारों का सिलसिला,
इश्तियाक-ए-यार था मेरी पलकों में तब सींचता हुआ ।
-निलेश कुमार गौरव

No comments:

Post a Comment