Tuesday, November 19, 2013

“दीप्त हुस्न में गुम हुए हैं चाँद तारे” .."deept husn me gum hue hain chaand taare"

“दीप्त हुस्न में गुम हुए हैं चाँद तारे”

जब भी वाबस्ता होता हूँ उन फूलों से,
करता रहा तुलना जिनका तुमसे,
पाया जमाल सबका मद्धम तेरी रानाईयों में,
बेअदद सकून पाता हूँ तेरी परछाईयों में।

बहार,संगमरमर,गुलों,घटाएँ,नेति फसाने,
कुछ नहीं तेरे लिए इनकी बिसातें,
इनकी शोखी गूँजती होगी खिजाँ के मारे वीरानों में,
जैसे फकत सब्जों का गुमाँ हो बियाबानों में,
ज्यों कुमुदिनी का गुरूत्व हो पंकसर में,
श्याम नभ हो और,लौ का हो गुरूर रजनीचर में।

दीप्त हुस्न में गुम हुए हैं चाँद तारे,
क्या करूँ तारीफ तेरी ? तुझपर बेनफ्स सारी मिसालें ।
-निलेश कुमार गौरव

Saturday, January 26, 2013

Rakhun akshunn ye abhrakusum

"Rakhun akshunn ye abhrakusum"

Rakhun akshunn,rakhun akshunn
Rakhun akshunn ye abhrakusum|

Himkirit ke funagi se,
Deept mayukh ke taaron tak,
Rajni ke supt bayaaron se,
Abdhi ke ugr jvaaron tak,

Ho prakhar tumhara vijaydhun,
Rakhun akshunn ye abhrakusum|

Khusion se ladi bahaaron me,
Rahun melon me,shringaaro me,
Ya shoksikt galiyaaron me,
Sapno ke bujhe diyaaron me,

Maathe pe chhaanv tirangaa ho,
Au,rahe nirantar bhaav ushm,
Rakhun akshunn,rakhun akshunn
Rakhun akshunn ye abhrakusum|
-NILESH KUMAR GAURAV,
(written on the occasion of 64th republic day)

"रखूँ अक्षुण्ण ये अभ्रकुसुम"

"रखूँ अक्षुण्ण ये अभ्रकुसुम"


रखूँ अक्षुण्ण,रखूँ अक्षुण्ण
रखूँ अक्षुण्ण ये अभ्रकुसुम
हिमकिरीट के फुनगी से
दीप्त मयूख के तारों तक,
रजनी के सुप्त बयारों से
अब्धि के उग्र ज्वारों तक,
हो प्रखर तुम्हारा विजयधुन,
रखूँ अक्षुण्ण ये अभ्रकुसुम|
खुशियों से लदी बहारों में
रहूँ मेलों में,श्रृंगारों में,
या शोकसिक्त गलियारों में,
सपनों के बुझे दियारों में,
माथे पे छाँव तिरंगा हो,
औ,रहे निरंतर भाव उष्म,
रखूँ अक्षुण्ण,रखूँ अक्षुण्ण
रखूँ अक्षुण्ण ये अभ्रकुसुम|
-निलेश कुमार गौरव
(चौसठवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर लिखित)