आसमानों में,
घुमङते बादलों में,
बचपन से ही देखी है,
हजार तस्वीरें,
कुछ जानी हुई,
कुछ अनजान,
मगर
परस हेतु
विकल,विह्वल,
जोशिश से भरे हुए,
शर्मीले ।
आज आयी है फिर से,
एक तस्वीर,
अम्बर की छाती को चीर,
मेरे निमिख को रोके,औ,
कहते हुए,
“कोई और रास्ता नहीं था
सच दिखलाने के लिए,
आज तुम भी बरसों बाद
लेटे हो
खुले आसमानों के नीचे,
कोई विवशता तो नहीं है न ?
या दर्पणों के कांचों ने
किरकिरी मचाई है
तुम्हारी आँखों में ?
मैंने कहा था न
जब विधुलेख निशा के आगोश में,
हालाँकि तुम्हारा हक भी होगा,
अभिनय कर रहे होगे
निष्ठा औ दुनियवी का,
तृप्ति के सागर से दूर,
आओगे दौङे हुए,
मेरी चाहसिक्त आँखों की
बारिश में भींगने,
मैं धोऊँगी हरदम
कुछ मैले छींटें होंगें
तेरे धवल तन पर,
शर्मसार मत होना अपनी बेबसी पर,
मैं तो तेरी ही हूँ सदा से,
हाँ,अब भी रोज आती हूँ,
बरसने,
तूम मिलते ही नहीं,
हवाओं का भी कुछ दोष होगा,
बिखेर देती होंगी आकृतियों को,
और तूम्हें अहसास न होता है,
मुझसे मिलने का,
हर रोज आऊँगी,
देखना हो तो
आया करो
खुले आसमानों के नीचे। ”
-निलेश कुमार गौरव
Wednesday, October 1, 2014
Sunday, June 8, 2014
तेरा ख़याल है या निवाल मुस्किराताें का..
तेरा ख़याल है या निवाल मुस्किराताें का,
इश्क़ का है साेज़ या फिर हश्र मुलाक़ातों का,
वश में नहीं मेरे मख्तूरात-ए-दिल-ए-मौजज़न,
यादें-अश्कबार है या सिरिश्क मेरी अाँखाें का।
-निलेश कुमार गौरव
Tera Khyaal hai ya niwaal muskiraato ka,
Ishk ka hai soj ya fir hashr mulakaato ka,
Vash me nahi mere makhturaat-i-dil-i-mauzjan,
Yaadein-ashkbaar hai ya sirishk meri aankho ka.
-Nilesh Kumar Gaurav
इश्क़ का है साेज़ या फिर हश्र मुलाक़ातों का,
वश में नहीं मेरे मख्तूरात-ए-दिल-ए-मौजज़न,
यादें-अश्कबार है या सिरिश्क मेरी अाँखाें का।
-निलेश कुमार गौरव
Tera Khyaal hai ya niwaal muskiraato ka,
Ishk ka hai soj ya fir hashr mulakaato ka,
Vash me nahi mere makhturaat-i-dil-i-mauzjan,
Yaadein-ashkbaar hai ya sirishk meri aankho ka.
-Nilesh Kumar Gaurav
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