रूप मोहा ओ डमरू वाले,
कोयम्बटूर की धरती वाले,
न किया श्रृंगार कोई,
भभूत ही तो हो लगाये,
पर देख तेरी ड्योढ़ी पर,
चरणरज ले अँजुलि भर,
पृथ्वी आयी,आकाश आया,
आस आयी, नये युग का
छोड़कर दिनचर्य अपनी,
प्रकृति का सौंदर्य आया,
अर्ज में अपना रूदन ही है,
हरहर देव तुमसे आस जगी है,
देश न हो पराभूत फिर से,
आ लगा ले अंक ऐसे
मग में इसके पंक काले,
बचा ले आ के शेष वाले,
हर ले, अधम्म जो जम गया है,
चढ़ पाप तांडव कर रहा है,
कर के नर्तन व्यूह मिटा दे,
गत युग में जैसे वंशी वाले.
- निलेश कुमार गौरव
Sunday, February 26, 2017
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