Tuesday, May 30, 2017

"फिर खिला दे बाग में वो फूल ,वो चेरी"

बहारों से गुज़ारिश ओढ़ ले फिर से वही शोख़ी,
फिर खिला दे बाग में खुशबू औ रानाई,

मैं जो लाया हूँ फ़क़त छोटा सा एक लम्हा,
न वापस फिर से आऊँगा,न करूँगा फिर कोई सजदा,

जिसे कहते  हैं कायनात की अनमोल सी झाँकी,
फिर खिला दे बाग में वो फूल ,वो चेरी।
निलेश कुमार गौरव

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