नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का,
सहने का पापों का, भीरू बन सत्ता का,
तेरे हर देव लिए हैं शस्त्र शास्त्र सदैव,
पय पोस पालती है ,भरकर अग्निपूर्ण नैन,
जब जब टूटी है माँओं पर, गरल कोष पशुता का,
लिये खप्पर पीती है दानवी उत्कंठा का,
सबीज ध्वंस करती है भारत के हर्ता का,
नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का
निलेश कुमार गौरव
Sunday, January 29, 2017
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment