Sunday, November 6, 2016

मगर गुमसुम सा ,क्यों तेरा ही स्वत्व रहे ?

तुम सिर्फ मुजस्समे संगमरमर नहीं ऐ मादर-ए-नस्ल-ए-इंसा,
तुममें जान भी है,रूह भी है,और वह सब कुछ है
जो खुदा में है और पुरूष में है,
चौखट,देहरी,यवनिका,
हैं जैसे ये लाखों जेवर,
बनाये गये तेरे दमन के लिए,
हया,नजाकत,माधुर्य,शोखी औ बाँकपन,
मुकद्दस भाव हैं बेशक,
मगर गुमसुम सा ,क्यों तेरा ही स्वत्व रहे ?
-निलेश कुमार गौरव

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