साहिल से मिलने की,
या फिर,बेचैन होने की नियति,
जैसे बन गई है प्रकृति,
इन सागर के लहरों की,
टूटती है,मिटती है,
मगर देती है अर्घ्य,
दुग्ध सा,फेनिल तरंगों से,
तट के मेहमानों को,
जो शायद अनजान हैं,
जल में उछलते मोहब्बतों के पारावार से.
-निलेश कुमार गौरव
Sunday, December 4, 2016
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