It is the sword on calf,
Lord Vishnu! should we ignore these all ?
We are perishing in worldly passes,
letters,subjects,examinations and classes,
Pleasure,standard and copying the lives,
forgetting the roots amidst sacred 'lies',
Should we suffer till you incarnate,
with that eternal wait,
Till you hear the crying chore,
Vipr,Dhenu,Sur,Sant Hita Linh Manuj Awatar.
Nilesh Kumar Gaurav.
Tuesday, May 30, 2017
"फिर खिला दे बाग में वो फूल ,वो चेरी"
बहारों से गुज़ारिश ओढ़ ले फिर से वही शोख़ी,
फिर खिला दे बाग में खुशबू औ रानाई,
मैं जो लाया हूँ फ़क़त छोटा सा एक लम्हा,
न वापस फिर से आऊँगा,न करूँगा फिर कोई सजदा,
जिसे कहते हैं कायनात की अनमोल सी झाँकी,
फिर खिला दे बाग में वो फूल ,वो चेरी।
निलेश कुमार गौरव
फिर खिला दे बाग में खुशबू औ रानाई,
मैं जो लाया हूँ फ़क़त छोटा सा एक लम्हा,
न वापस फिर से आऊँगा,न करूँगा फिर कोई सजदा,
जिसे कहते हैं कायनात की अनमोल सी झाँकी,
फिर खिला दे बाग में वो फूल ,वो चेरी।
निलेश कुमार गौरव
Tuesday, March 7, 2017
जहिया से होलइ जमीनीया से दूरी
जहिया से होलइ जमीनीया से दूरी,
अब कही कइसे अपन मजबूरी,
मनमा न लागत परदेशी अंगनमा,
छछनत रहे तबसे हमरे परनमा,
इ कैसन पढ़लि ,छूटलइ जनमभूंइयाँ
घर छुटल,खेत छुटल,छुटल सब कूंइयाँ,
गोरू बछड़वा के दरशन छूटल,
लंगोटि इयरवन से नेहियन टूटल,
खेल छुटल,मेल छूटल,छूटल धूरखेरी,
जहिया से होलइ जमीनीया से दूरी I
निलेश कुमार गौरव
अब कही कइसे अपन मजबूरी,
मनमा न लागत परदेशी अंगनमा,
छछनत रहे तबसे हमरे परनमा,
इ कैसन पढ़लि ,छूटलइ जनमभूंइयाँ
घर छुटल,खेत छुटल,छुटल सब कूंइयाँ,
गोरू बछड़वा के दरशन छूटल,
लंगोटि इयरवन से नेहियन टूटल,
खेल छुटल,मेल छूटल,छूटल धूरखेरी,
जहिया से होलइ जमीनीया से दूरी I
निलेश कुमार गौरव
Sunday, February 26, 2017
ओ डमरू वाले
रूप मोहा ओ डमरू वाले,
कोयम्बटूर की धरती वाले,
न किया श्रृंगार कोई,
भभूत ही तो हो लगाये,
पर देख तेरी ड्योढ़ी पर,
चरणरज ले अँजुलि भर,
पृथ्वी आयी,आकाश आया,
आस आयी, नये युग का
छोड़कर दिनचर्य अपनी,
प्रकृति का सौंदर्य आया,
अर्ज में अपना रूदन ही है,
हरहर देव तुमसे आस जगी है,
देश न हो पराभूत फिर से,
आ लगा ले अंक ऐसे
मग में इसके पंक काले,
बचा ले आ के शेष वाले,
हर ले, अधम्म जो जम गया है,
चढ़ पाप तांडव कर रहा है,
कर के नर्तन व्यूह मिटा दे,
गत युग में जैसे वंशी वाले.
- निलेश कुमार गौरव
कोयम्बटूर की धरती वाले,
न किया श्रृंगार कोई,
भभूत ही तो हो लगाये,
पर देख तेरी ड्योढ़ी पर,
चरणरज ले अँजुलि भर,
पृथ्वी आयी,आकाश आया,
आस आयी, नये युग का
छोड़कर दिनचर्य अपनी,
प्रकृति का सौंदर्य आया,
अर्ज में अपना रूदन ही है,
हरहर देव तुमसे आस जगी है,
देश न हो पराभूत फिर से,
आ लगा ले अंक ऐसे
मग में इसके पंक काले,
बचा ले आ के शेष वाले,
हर ले, अधम्म जो जम गया है,
चढ़ पाप तांडव कर रहा है,
कर के नर्तन व्यूह मिटा दे,
गत युग में जैसे वंशी वाले.
- निलेश कुमार गौरव
Wednesday, February 15, 2017
Infallibility Of All Thoughts!
"Infallibility Of All Thoughts! "
We can confront enemy nations,
but not the enemies' thought-lines !
Borders insulate the countries,
but not the vestige
of beliefs that straddle at ease.
Is it a noble guideline
or our solemn 'ideal' ?
That all ideologies ,good or evil, should be respected,
and not be fought n berated !
Nilesh Kumar Gaurav
We can confront enemy nations,
but not the enemies' thought-lines !
Borders insulate the countries,
but not the vestige
of beliefs that straddle at ease.
Is it a noble guideline
or our solemn 'ideal' ?
That all ideologies ,good or evil, should be respected,
and not be fought n berated !
Nilesh Kumar Gaurav
Sunday, January 29, 2017
नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का
नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का,
सहने का पापों का, भीरू बन सत्ता का,
तेरे हर देव लिए हैं शस्त्र शास्त्र सदैव,
पय पोस पालती है ,भरकर अग्निपूर्ण नैन,
जब जब टूटी है माँओं पर, गरल कोष पशुता का,
लिये खप्पर पीती है दानवी उत्कंठा का,
सबीज ध्वंस करती है भारत के हर्ता का,
नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का
निलेश कुमार गौरव
सहने का पापों का, भीरू बन सत्ता का,
तेरे हर देव लिए हैं शस्त्र शास्त्र सदैव,
पय पोस पालती है ,भरकर अग्निपूर्ण नैन,
जब जब टूटी है माँओं पर, गरल कोष पशुता का,
लिये खप्पर पीती है दानवी उत्कंठा का,
सबीज ध्वंस करती है भारत के हर्ता का,
नहीं देश वंशज 'सहिष्णुता' का
निलेश कुमार गौरव
शराब-बंदी
शराब बंदी औ पीने वालों को काल कोठरी,
शर्त पूरी होगी अब कोहवर की,
तप्त लब के सिवा अब क्या नशा,
आँखों में ही ढूँढ़नी होगी मदिरा,
नहीं जाना कलाली की राहों में,
पायेंगें सुकून पिया की बाँहों में
निलेश कुमार गौरव
शर्त पूरी होगी अब कोहवर की,
तप्त लब के सिवा अब क्या नशा,
आँखों में ही ढूँढ़नी होगी मदिरा,
नहीं जाना कलाली की राहों में,
पायेंगें सुकून पिया की बाँहों में
निलेश कुमार गौरव
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