साहिल से मिलने की,
या फिर,बेचैन होने की नियति,
जैसे बन गई है प्रकृति,
इन सागर के लहरों की,
टूटती है,मिटती है,
मगर देती है अर्घ्य,
दुग्ध सा,फेनिल तरंगों से,
तट के मेहमानों को,
जो शायद अनजान हैं,
जल में उछलते मोहब्बतों के पारावार से.
-निलेश कुमार गौरव
Sunday, December 4, 2016
Sunday, November 6, 2016
मगर गुमसुम सा ,क्यों तेरा ही स्वत्व रहे ?
तुम सिर्फ मुजस्समे संगमरमर नहीं ऐ मादर-ए-नस्ल-ए-इंसा,
तुममें जान भी है,रूह भी है,और वह सब कुछ है
जो खुदा में है और पुरूष में है,
चौखट,देहरी,यवनिका,
हैं जैसे ये लाखों जेवर,
बनाये गये तेरे दमन के लिए,
हया,नजाकत,माधुर्य,शोखी औ बाँकपन,
मुकद्दस भाव हैं बेशक,
मगर गुमसुम सा ,क्यों तेरा ही स्वत्व रहे ?
-निलेश कुमार गौरव
Monday, October 17, 2016
स्वीकार कर लो आचमन को.
समसामयिकी खिंचती है,हर रोज मेरी लेखनी को,
कर दूँ परित्याग क्यों? प्रेम की अभिव्यक्ति को,
प्रेम है पूजन,पुष्प चंदन तेरा महावर,
प्रेम है तरपन,महबूब वक्ष है नद सरोवर,
सत्संग का है प्यास ऐसी,
छोड़ दूँ क्यों प्रेम भजन को,
तू ही लीला,तू ही कीर्तन,
दृग-कोरकों का यह निर्झरण,
स्वीकार कर लो आचमन को.
-निलेश कुमार गौरव
कर दूँ परित्याग क्यों? प्रेम की अभिव्यक्ति को,
प्रेम है पूजन,पुष्प चंदन तेरा महावर,
प्रेम है तरपन,महबूब वक्ष है नद सरोवर,
सत्संग का है प्यास ऐसी,
छोड़ दूँ क्यों प्रेम भजन को,
तू ही लीला,तू ही कीर्तन,
दृग-कोरकों का यह निर्झरण,
स्वीकार कर लो आचमन को.
-निलेश कुमार गौरव
Saturday, May 21, 2016
क्षनिक व्योम की बादरिया में, लिख सकूँ जो खुद का हाल कभी,
बनाकर बुत ,है जो संग प्रचुर, पूजूँ सुबहोशाम कभी.
पत्थर दिल को मोम बना ,पिघला दूँ ,पूरा काम तभी,
महुवा के फूलों से दिल में, भर सकूँ इश्केजाम कभी,
क्षनिक व्योम की बादरिया में, लिख सकूँ जो खुद का हाल कभी,
-निलेश कुमार गौरव
BANAKAR BUT ,HAI JO SANG PRACHUR,PUJUN SUBAHOSHAAM KABHI,
PATHAR DIL KO MOM BANA,PIGHLA DUN ,PURA KAAM TABHI,
MAHUA KE FULON SE DIL ME,BHAR SAKUN ISHQ-E-JAAM KABHI,
KSHANIK VYOM KI BADARIYA ME,LIKH SAKUN JO KHUD KA HAAL KABHI.
-NILESH KUMAR GAURAV.
पत्थर दिल को मोम बना ,पिघला दूँ ,पूरा काम तभी,
महुवा के फूलों से दिल में, भर सकूँ इश्केजाम कभी,
क्षनिक व्योम की बादरिया में, लिख सकूँ जो खुद का हाल कभी,
-निलेश कुमार गौरव
BANAKAR BUT ,HAI JO SANG PRACHUR,PUJUN SUBAHOSHAAM KABHI,
PATHAR DIL KO MOM BANA,PIGHLA DUN ,PURA KAAM TABHI,
MAHUA KE FULON SE DIL ME,BHAR SAKUN ISHQ-E-JAAM KABHI,
KSHANIK VYOM KI BADARIYA ME,LIKH SAKUN JO KHUD KA HAAL KABHI.
-NILESH KUMAR GAURAV.
Saturday, February 20, 2016
तुझे कम्यूनिज्म का हल दे दूँ (tujhe communism ka hal de dun)
आ तो यहाँ,तुझे कम्यूनिज्म का हल दे दूँ,
कभी आ के रह इन खेतों में,तेरी कलम को फेंक हल दे दूँ/
बहुत करते हो न चर्चा सफेदपोश बनके उन कैंपसों में?
कभी आ इन मशीनों के ग्रीजों से फेंट तेरे जल कर दूँ/
सुना है,उड़ाते हो रॉकेट अपने सियासी परचों से,इन्किलाब के,
रहकर देख इन ठिठुरते मौसमों में,जगह बची है बदन पे फटे कंबल कर दूँ/
बैठे हो न बहुत दूर,मेरे आहों को स्वर देने के हिप्पोक्रैसी मे,मेरे शोषकों के छाँह में ?
कभी उठा के देख एक गैंता,कुदाल,कुछ भी,
कड़कती लू में लोहा हो गयी है मिट्टी,काट के नहर कर दूँ/
-निलेश कुमार गौरव
Aa toh yahaan,tujhe communism ka hal de dun,
kabhi aa ke rah in kheton me,teri kalam ko fenk hal de dun.
bahut karte ho na charcha safedposh banke un campuson me?
kabhi aa in machinon ke greason se fent tere jal kar dun.
suna hai, udaate ho rocket apne siyasi parchon se,inquilaab ke,
rahkar dekh in thithurte mausamon me,jagah bachi hai badan pe fate kambal kar dun.
baithe ho na bahut dur,mere aahon ko swar dene ke hypocrisy me,mere shoshakon ki chhaanh me?
kabhi uthaa ke dekh ek gainta,kudaal,kucch bhi,
kadakti loo me loha ho gayi hai mitti,kaat ke nahar kar dun.
-Nilesh Kumar Gaurav
कभी आ के रह इन खेतों में,तेरी कलम को फेंक हल दे दूँ/
बहुत करते हो न चर्चा सफेदपोश बनके उन कैंपसों में?
कभी आ इन मशीनों के ग्रीजों से फेंट तेरे जल कर दूँ/
सुना है,उड़ाते हो रॉकेट अपने सियासी परचों से,इन्किलाब के,
रहकर देख इन ठिठुरते मौसमों में,जगह बची है बदन पे फटे कंबल कर दूँ/
बैठे हो न बहुत दूर,मेरे आहों को स्वर देने के हिप्पोक्रैसी मे,मेरे शोषकों के छाँह में ?
कभी उठा के देख एक गैंता,कुदाल,कुछ भी,
कड़कती लू में लोहा हो गयी है मिट्टी,काट के नहर कर दूँ/
-निलेश कुमार गौरव
Aa toh yahaan,tujhe communism ka hal de dun,
kabhi aa ke rah in kheton me,teri kalam ko fenk hal de dun.
bahut karte ho na charcha safedposh banke un campuson me?
kabhi aa in machinon ke greason se fent tere jal kar dun.
suna hai, udaate ho rocket apne siyasi parchon se,inquilaab ke,
rahkar dekh in thithurte mausamon me,jagah bachi hai badan pe fate kambal kar dun.
baithe ho na bahut dur,mere aahon ko swar dene ke hypocrisy me,mere shoshakon ki chhaanh me?
kabhi uthaa ke dekh ek gainta,kudaal,kucch bhi,
kadakti loo me loha ho gayi hai mitti,kaat ke nahar kar dun.
-Nilesh Kumar Gaurav
Monday, February 15, 2016
याद तो हरदम की हकीकत है अब..
याद तो हरदम की हकीकत है अब,आती नहीं जो सिर्फ गाहे-ब-गाहे,
रिंदों की प्यास सी ही तरस जाती है , मौजो में समाए,
न बोसोकनार की आस ,न दामन से बंधने की ख्वाहिश ही अब तो,
इजहार की बेबसी भी एेसी,बरस जाती ही है बिना बोले बताए /
-निलेश कुमार गौरव.
Yaad toh hardam ki hakikat hai ab, aati nahin jo sirf gaahe-ba-gaahe,
rindo ki pyaas si hee taras jaati hai,mauzo me samaaye,
na bosokanaar ki aas ,na daaman se bandhane ki khwaahish hee ab toh,
ijhaar ki bebasi bhi aisi,baras jaati hee hai bina bole bataaye/
-Nilesh Kumar Gaurav.
रिंदों की प्यास सी ही तरस जाती है , मौजो में समाए,
न बोसोकनार की आस ,न दामन से बंधने की ख्वाहिश ही अब तो,
इजहार की बेबसी भी एेसी,बरस जाती ही है बिना बोले बताए /
-निलेश कुमार गौरव.
Yaad toh hardam ki hakikat hai ab, aati nahin jo sirf gaahe-ba-gaahe,
rindo ki pyaas si hee taras jaati hai,mauzo me samaaye,
na bosokanaar ki aas ,na daaman se bandhane ki khwaahish hee ab toh,
ijhaar ki bebasi bhi aisi,baras jaati hee hai bina bole bataaye/
-Nilesh Kumar Gaurav.
Sunday, February 14, 2016
याद तेरी दीप्त उल्का
valentine day special..
विरह का घनघोर धुंधलका,
याद तेरी दीप्त उल्का /
लो फिर मधुमास आया,
वजह दे फिर से पुलक का /
सुकून का रस फिर पिला दे,
सुला कर पास वक्ष के /
नैन जल फरियाद करते,
स्याह शब सैयाद जैसे /
आवेग में ऐसे उतरता,
तीक्ष्ण नश्तर सोज दिल का /
विरह का घनघोर धुंधलका,
याद तेरी दीप्त उल्का /
-निलेश कुमार गौरव.
Virah ka ghanghor dhundhalka,
yaad teri deept ulka/
lo fir madhumaas aaya,
vajah de fir se pulak ka/
sukun ka ras fir pila de,
sula kar paas vaksh ke/
nain jal fariyaad karte,
syaah shab saiyaad jaise/
aaveg me aise utarta,
teekshn nashtar soj dil ka/
virah ka ghanghor dhundhalka,
yaad teri deept ulka/
-Nilesh Kumar Gaurav
विरह का घनघोर धुंधलका,
याद तेरी दीप्त उल्का /
लो फिर मधुमास आया,
वजह दे फिर से पुलक का /
सुकून का रस फिर पिला दे,
सुला कर पास वक्ष के /
नैन जल फरियाद करते,
स्याह शब सैयाद जैसे /
आवेग में ऐसे उतरता,
तीक्ष्ण नश्तर सोज दिल का /
विरह का घनघोर धुंधलका,
याद तेरी दीप्त उल्का /
-निलेश कुमार गौरव.
Virah ka ghanghor dhundhalka,
yaad teri deept ulka/
lo fir madhumaas aaya,
vajah de fir se pulak ka/
sukun ka ras fir pila de,
sula kar paas vaksh ke/
nain jal fariyaad karte,
syaah shab saiyaad jaise/
aaveg me aise utarta,
teekshn nashtar soj dil ka/
virah ka ghanghor dhundhalka,
yaad teri deept ulka/
-Nilesh Kumar Gaurav
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